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Tuesday, September 21, 2010

राष्ट्रमंडल खेल : हम सबकी जिम्मेदारी

19 राष्ट्रमंडल खेल होने में अब कुछ ही दिन शेष रह गए  हैं ! हमारे नेताओं की बदौलत ये बेकार का बोझ जो हमें याद दिलाता है की तुम अब अंग्रेजों के गुलाम थे, हम पर लादा गया है ! राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली इसके लिए  कितनी तैयार है , ये भी जगजाहिर है ! नित नई घटनाएँ या फिर दुर्घटनाएं इस बात के प्रमाण देती रहती हैं !आज भी जवाहरलाल नेहरु स्टेडियम के सामना एक फुटओवर ब्रिज गिर गया है जो इसका तजा उदहारण है ! स्टेडियम, खेल परिसर, सफाई , परिवहन, स्वास्थ्य व्यवस्थ्या, आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति, सुरक्षा, विभिन्न विभागों में तालमेल आदि अनेक मोर्चों  पर हमने व्यापक तैयारियां की है लेकिन अभी काफी कुछ करना बाकी है ! जामा मस्जिद में हुई दुर्घटना हमारी सुरक्षा व्यवस्था को एक करार झटका है ! इस दौरान नेताओं और अफसरों की सोच कितनी देश के कितनी उलट है ये भी सामने आया है, हर चीज को अंतराष्ट्रिये स्तर का बनाना है, ! भारत की कोई चीज उन्हें विश्वस्निये ही नहीं लगी !ये दुखद है और इस पर हमें विचार करना चाहिए !! फिलहाल राष्ट्रमंडल खेलों की बात करते है !




"राष्ट्रमंडल खेल, दिल्ली 2010 आयोजन समिति" 10 फरवरी, 2005 को ही अस्तित्व में आ गई थी ! तब से लेकर अब तक के ५ सालों में भी यदि तैयारियां पूरी नहीं हो पाई है तो ये अत्यंत्य शर्मनाक है !ऊपर से इसमें भ्रष्टाचार के खुलासे ने सोने पे सुहागे का काम किया है !इसमें न सिर्फ आयोजन समिति, बल्कि दिल्ली सरकार, दिल्ली परिवहन निगम, नई दिल्ली पालिका परिषद्, दिल्ली विकास प्राधिकरण, और अन्य एजेंसियां और कम्पनियाँ जो विभिन्न कार्यों में लगी हुई थी, उन सबकी असफलता और निक्कम्मापन सामने आया है !
लेकिन अब ये खेल देश की प्रतिष्ठा का सवाल हैं ! अब जबकि  कुछ ही दिन शेष रह गए हैं तो खेलों में भ्रष्टाचार, अधूरी तयारी आदि को लेकर हो हल्ला मचाना सबसे बड़ी बेवकूफी होगी ! इसमें कोई शक नहीं की राष्ट्रमंडल खेलों में अन्य खेल भी खूब खेले गए हैं ! अनेक लोगों ने अपने पूरे खानदान तक के वारे न्यारे किया हैं ! इन घपलों की सख्त जाँच होनी चाहिए और दोषियों को उचित दंड मिलना चाहिए किन्तु ये प्रक्रिया या तो खेल सम्पन्न होने के तुरंत बाद शुरू हो या फिर जाँच एजेंसियां  अपना काम करती रहें परुंत खेलों पर उसका लेशमात्र भी असर न पड़े !


पिछले एक तिमाही में राष्ट्रमंडल खेलों को लेकर मीडिया की अत्यधिक और वाजिब सक्रीयता से बहुत बड़ा भ्रष्टाचार दिल्ली, भारत और समस्त विश्व  के सामने उजागर हुआ ! ये वही मीडिया है जो पिछले ५ सालों से इस विषय  पर पूरी तरह मौन और सुप्त अवस्था में था लेकिन जब उसे टीआरपी दिखी तो चैनलों पर दिन भर राष्ट्रमंडल खेल आयोजन में भ्रष्टाचार को ही चलाया गया, अख़बारों में पन्ने भरे जाने लगे ! मीडिया ने इस महाभ्रष्टाचार का खुलासा कर अपना काम काफी हद तक किया लेकिन इसमें वो ये भूल गया की ये खेल एक वैश्विक आयोजन है ! मीडिया की इस अदूरदर्शिता के कारण विश्व में भारत की जो छवि ख़राब हुई है, उसकी भरपाई मुश्किल होगी ! बारिश, डेंगू का फैलना, मीडिया द्वारा लायी गई बाढ़ आदि ने भारत की बनती छवि का और अधिक बंटाधार किया है !! निसंदेह जो कमियां है, उन्हें उजागर करना, स्वीकार करना और उसे सुधारना आवश्यक है लेकिन ऐसे समय में थोडा सोच विचारकर कदम उठाना चाहिए !


 खैर, अब दिल्ली खेलों के शुभारम्भ की प्रतीक्षा कर रही है ! अनेक आशंकाओं, अनिश्चितताओं के साथ दिल्लीवासी राष्ट्रमंडल देशों के स्वागत के लिए स्वयं को तैयार कर रहें है ! ऐसे में हम सबकी जिम्मेदारी बनती है की भारत की छवि को और न बिगाड़ें बल्कि हमारे प्राचीन "अतिथि देवो भाव " के संस्कार का समस्त विश्व को दर्शन कराएँ ! नेता, अफसर, छात्र, अध्यापक, व्यापारी, दुकानदार, रिक्शा-ऑटो चालक, बस कंडकटर, हवालदार, सफाईकर्मी , डॉक्टर, खोमचे वाला, मीडिया कर्मी और प्रत्येक खासोआम दिल्लीवाला की जिम्मेदारी बनती है की हम भारत की बनती साख को और  गौरव प्रदान करें ! इसमें वे मीडिया कर्मी भी शामिल है जो सरकार  को उसके काम याद दिलाते रहते हैं ! आज से कुछ समय पहले पश्चिम के भौतिकवादी धनाढ्य भारत को "सपेरों का देश" कहा करते थे, अब ऐसी नौबत न आये की फिर कोई हमें ऐसी उपाधि दे ! हम पर कोई असभ्य, या घटिया मेजबान होने का आरोप लगाये तो ये वास्तव में प्रत्येक भारतीय के लिए दुखद होगा और उसके जिम्मेदार शीला दीक्षित, सुरेश कलमाड़ी जैसे लोग तो होंगे ही लेकिन हम भी बराबर के जिम्मेदार होंगे ! और हाँ जम देश की बदनामी होगी तो कोई ये नहीं कहेगा की शीला दीक्षित, सुरेश कलमाड़ी, मनमोहन सिंह बहुत बिलकुल निकम्मे हैं या वे गैरजिम्मेदार और असभ्य हैं बल्कि वो यही कहेगा की दिल्लीवाले और भारतीय बहुत असभ्य है !
मैक्समूलर, अर्नोल्ड टायनबी, भगिनी निवेदिता आदि ने जिस भारतीय संस्कृति को श्रेष्ठतम की संज्ञा देकर उसमे  डुबकी लगाई  है , अब समय आ गया है की उनके वंशजों को तथा सम्पूर्ण विश्व को इस महान संस्कृति का दर्शन कराएँ ! स्वयंसेवक, पोलिस, प्रशासन तो अपना  काम करेंगे ही लेकिन एक भारतीय और दिल्लीवाला होने के नाते प्रत्येक व्यक्ति की महती भूमिका है ! तो आइये हम सब अपनी अपनी भूमिका का निर्वाहन करते हुए "मेरा भारत महान" का उद्घोष संपूर्ण विश्व में करें !

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