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Thursday, October 28, 2010

चलते चलते

उस दिन से मैं बहुत बदल गया हूँ,
                                   जब तन्हाई ने मुस्कुरा कर कहा

कि तू तो मुझसे भी ज्यादा तनहा है !!


"यदि आप कृपया PLEASE कहेंगे तो कुछ लोग उसे आपकी कमजोरी समझकर आपके सिर पर बैठ जायेंगे ! ऐसे लोगों के पिछवाड़े पर लात मारिए, देखिये वे आपके सामने खड़े हो जायेंगे और आपको सलाम ठोकेंगे "--- खुशवंत सिंह (व्यवहार मनोविज्ञान के बारे में )

Tuesday, September 21, 2010

राष्ट्रमंडल खेल : हम सबकी जिम्मेदारी

19 राष्ट्रमंडल खेल होने में अब कुछ ही दिन शेष रह गए  हैं ! हमारे नेताओं की बदौलत ये बेकार का बोझ जो हमें याद दिलाता है की तुम अब अंग्रेजों के गुलाम थे, हम पर लादा गया है ! राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली इसके लिए  कितनी तैयार है , ये भी जगजाहिर है ! नित नई घटनाएँ या फिर दुर्घटनाएं इस बात के प्रमाण देती रहती हैं !आज भी जवाहरलाल नेहरु स्टेडियम के सामना एक फुटओवर ब्रिज गिर गया है जो इसका तजा उदहारण है ! स्टेडियम, खेल परिसर, सफाई , परिवहन, स्वास्थ्य व्यवस्थ्या, आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति, सुरक्षा, विभिन्न विभागों में तालमेल आदि अनेक मोर्चों  पर हमने व्यापक तैयारियां की है लेकिन अभी काफी कुछ करना बाकी है ! जामा मस्जिद में हुई दुर्घटना हमारी सुरक्षा व्यवस्था को एक करार झटका है ! इस दौरान नेताओं और अफसरों की सोच कितनी देश के कितनी उलट है ये भी सामने आया है, हर चीज को अंतराष्ट्रिये स्तर का बनाना है, ! भारत की कोई चीज उन्हें विश्वस्निये ही नहीं लगी !ये दुखद है और इस पर हमें विचार करना चाहिए !! फिलहाल राष्ट्रमंडल खेलों की बात करते है !




"राष्ट्रमंडल खेल, दिल्ली 2010 आयोजन समिति" 10 फरवरी, 2005 को ही अस्तित्व में आ गई थी ! तब से लेकर अब तक के ५ सालों में भी यदि तैयारियां पूरी नहीं हो पाई है तो ये अत्यंत्य शर्मनाक है !ऊपर से इसमें भ्रष्टाचार के खुलासे ने सोने पे सुहागे का काम किया है !इसमें न सिर्फ आयोजन समिति, बल्कि दिल्ली सरकार, दिल्ली परिवहन निगम, नई दिल्ली पालिका परिषद्, दिल्ली विकास प्राधिकरण, और अन्य एजेंसियां और कम्पनियाँ जो विभिन्न कार्यों में लगी हुई थी, उन सबकी असफलता और निक्कम्मापन सामने आया है !
लेकिन अब ये खेल देश की प्रतिष्ठा का सवाल हैं ! अब जबकि  कुछ ही दिन शेष रह गए हैं तो खेलों में भ्रष्टाचार, अधूरी तयारी आदि को लेकर हो हल्ला मचाना सबसे बड़ी बेवकूफी होगी ! इसमें कोई शक नहीं की राष्ट्रमंडल खेलों में अन्य खेल भी खूब खेले गए हैं ! अनेक लोगों ने अपने पूरे खानदान तक के वारे न्यारे किया हैं ! इन घपलों की सख्त जाँच होनी चाहिए और दोषियों को उचित दंड मिलना चाहिए किन्तु ये प्रक्रिया या तो खेल सम्पन्न होने के तुरंत बाद शुरू हो या फिर जाँच एजेंसियां  अपना काम करती रहें परुंत खेलों पर उसका लेशमात्र भी असर न पड़े !


पिछले एक तिमाही में राष्ट्रमंडल खेलों को लेकर मीडिया की अत्यधिक और वाजिब सक्रीयता से बहुत बड़ा भ्रष्टाचार दिल्ली, भारत और समस्त विश्व  के सामने उजागर हुआ ! ये वही मीडिया है जो पिछले ५ सालों से इस विषय  पर पूरी तरह मौन और सुप्त अवस्था में था लेकिन जब उसे टीआरपी दिखी तो चैनलों पर दिन भर राष्ट्रमंडल खेल आयोजन में भ्रष्टाचार को ही चलाया गया, अख़बारों में पन्ने भरे जाने लगे ! मीडिया ने इस महाभ्रष्टाचार का खुलासा कर अपना काम काफी हद तक किया लेकिन इसमें वो ये भूल गया की ये खेल एक वैश्विक आयोजन है ! मीडिया की इस अदूरदर्शिता के कारण विश्व में भारत की जो छवि ख़राब हुई है, उसकी भरपाई मुश्किल होगी ! बारिश, डेंगू का फैलना, मीडिया द्वारा लायी गई बाढ़ आदि ने भारत की बनती छवि का और अधिक बंटाधार किया है !! निसंदेह जो कमियां है, उन्हें उजागर करना, स्वीकार करना और उसे सुधारना आवश्यक है लेकिन ऐसे समय में थोडा सोच विचारकर कदम उठाना चाहिए !


 खैर, अब दिल्ली खेलों के शुभारम्भ की प्रतीक्षा कर रही है ! अनेक आशंकाओं, अनिश्चितताओं के साथ दिल्लीवासी राष्ट्रमंडल देशों के स्वागत के लिए स्वयं को तैयार कर रहें है ! ऐसे में हम सबकी जिम्मेदारी बनती है की भारत की छवि को और न बिगाड़ें बल्कि हमारे प्राचीन "अतिथि देवो भाव " के संस्कार का समस्त विश्व को दर्शन कराएँ ! नेता, अफसर, छात्र, अध्यापक, व्यापारी, दुकानदार, रिक्शा-ऑटो चालक, बस कंडकटर, हवालदार, सफाईकर्मी , डॉक्टर, खोमचे वाला, मीडिया कर्मी और प्रत्येक खासोआम दिल्लीवाला की जिम्मेदारी बनती है की हम भारत की बनती साख को और  गौरव प्रदान करें ! इसमें वे मीडिया कर्मी भी शामिल है जो सरकार  को उसके काम याद दिलाते रहते हैं ! आज से कुछ समय पहले पश्चिम के भौतिकवादी धनाढ्य भारत को "सपेरों का देश" कहा करते थे, अब ऐसी नौबत न आये की फिर कोई हमें ऐसी उपाधि दे ! हम पर कोई असभ्य, या घटिया मेजबान होने का आरोप लगाये तो ये वास्तव में प्रत्येक भारतीय के लिए दुखद होगा और उसके जिम्मेदार शीला दीक्षित, सुरेश कलमाड़ी जैसे लोग तो होंगे ही लेकिन हम भी बराबर के जिम्मेदार होंगे ! और हाँ जम देश की बदनामी होगी तो कोई ये नहीं कहेगा की शीला दीक्षित, सुरेश कलमाड़ी, मनमोहन सिंह बहुत बिलकुल निकम्मे हैं या वे गैरजिम्मेदार और असभ्य हैं बल्कि वो यही कहेगा की दिल्लीवाले और भारतीय बहुत असभ्य है !
मैक्समूलर, अर्नोल्ड टायनबी, भगिनी निवेदिता आदि ने जिस भारतीय संस्कृति को श्रेष्ठतम की संज्ञा देकर उसमे  डुबकी लगाई  है , अब समय आ गया है की उनके वंशजों को तथा सम्पूर्ण विश्व को इस महान संस्कृति का दर्शन कराएँ ! स्वयंसेवक, पोलिस, प्रशासन तो अपना  काम करेंगे ही लेकिन एक भारतीय और दिल्लीवाला होने के नाते प्रत्येक व्यक्ति की महती भूमिका है ! तो आइये हम सब अपनी अपनी भूमिका का निर्वाहन करते हुए "मेरा भारत महान" का उद्घोष संपूर्ण विश्व में करें !

Friday, July 23, 2010

बढ़ते दाम : सरकार नाकाम

कामनवेल्थ की ये कैसी घटा छाई है !
कि शहर में हर रोज बढ़ रही महंगाई है !!

बड़ी चकाचौंध है सारा शहर जगमगा रहा है,
वाह! क्या रौनक है बाजारों में बड़ा हसीं नजारा है !
पिस रही है जनता सारी, मत पूछिए
कि किस तरह होता यहाँ गुजरा है !!

सोने चाँदी के दामों कि हमें फिक्र नहीं,
वो तो हमारी पहुच से भी परे हैं !
हमें तो फिक्र है 'पेट्रोल' और 'डीजल' की
जिनके दाम सोने चाँदी से भी खरे हैं !!

'सी एन जी' और 'एल पी जी' के दामों में 'सेंसेक्स' से ज्यादा उछाल है !
बस में सफ़र करना भी आसान नही महंगाई का ये हाल है !!

बंद का असर अख़बारों की सुर्ख़ियों में तो दिखता है ,
पर असल में हर सामान बढे हुए दामों पर ही बिकता है !

चिकन मटन की दुकानों पर तो लग गए अब तालें हैं !
क्योंकि उतने ही दामों पर यहाँ बिकती सब्जियां और दालें हैं !

इतना सब होने पर भी कोई चीज 'PURE' नहीं है ,
दामों में कमी आएगी इसके लिए सरकार 'SHURE' नही है !
सरकार का कहना है की मेट्रो में सफ़र करें ,
बढ़ जाये अगर दाम मेट्रो के भी तो भी हम 'SUFFER' करें !

महंगाई का असर दूध के दामों पर भी दिख रहा है ,
ये अलग बात है की दूध के नाम पर कुछ और ही बिक रहा है !

जाने कैसे बनी हुई ये देश की राजधानी है ,
जिसमे न तो रहने के लिए बिजली और न पीने के लिए पानी है !


कम कीमतों पर देती सरकार बस आश्वासन है,
अब  तो जागो यारों,
ये लोकतंत्र नहीं रहा,
ये अंग्रेजों जैसा ही शासन है !
                         --------------  सालिक अहमद
ये कविता मेरे मित्र और सहपाठी सालिक अहमद द्वारा लिखी गयी है  ! उनकी इच्छानुसार मैंने इसे अपने ब्लॉग पर पोस्ट कर दी है !

सालिक का संपर्क सूत्र ------
Mobile ---- 9213999302
E mail id -- salik.ahmed211@yahoo.in

धन्यवाद !!!!!

Monday, February 15, 2010

भगत सिंह को 13 फरवरी को फाँसी

14 फरवरी की शाम से मै बहुत परेशान था ,  valentine डे को लेकर नहीं बल्कि किसी अन्य कारण से ! मामला ये है की मेरा ऑरकुट प्रोफाइल मेरे साथं -2 मेरा एक मित्र भी चलाता है ! 14 फरवरी को उसने अपडेट किया की आज हम लोगों को valentine डे तो याद है लेकिन 13 फरवरी को शहीदे आज़म भगत सिंह , सुखदेव और शिवराम राजगुरु  को फाँसी पर लटकाया गया था ,ये किसी को याद नहीं है !"  अब ये वाकई अचम्भे की बात है क्योंकि सभी जानते है कि भगत सिंह और उनके साथियों को 23 मार्च की शाम 7 बजकर 33 मिनट पर फाँसी पर लटकाया गया था !मेरे दोस्त ने ये गलत अपडेट डी और अगले ही दिन मुझे 3 फ़ोन आये इस बात को लेकर , साथ ही 2 कमेन्ट भी आये ! इसीलिए मै एक पोस्ट इसी बात पर लिख रहा हूँ !13 फरवरी को valentine डे का विरोध करने के लिए बहुत से लोगों ने इस गलत बात का मैसेज के द्वारा खूब प्रचार किया !पूरे देश में ये मैसेज  चला कि  आज हम लोगों को valentine डे तो याद है लेकिन 13 फरवरी को शहीदे आज़म भगत सिंह , सुखदेव और शिवराम राजगुरु  को फाँसी पर लटकाया गया था ,ये किसी को याद नहीं है ! लोग valentine डे के विरोध के चक्कर में खुद ये भूल गए कि भगत सिंह और उनके साथियो को फाँसी कब हुई थी और  मैसेज के द्वारा अन्य लोगों को यही ताना मारते रहे कि भगत सिंह कि फाँसी का किसी को याद नहीं ! काफी हास्यास्पद बात है ! अब ये मैसेज कहा से आया ये तो पता नहीं लेकिन मैंने जो थोड़ी खोजबीन कि है उसे मै आपके सामने रख रहा हूँ !
हालाँकि ये मैसेज 12 फरवरी से भेजा जाना शुरू हो गया था !लेकिन इसमें बाढ़ आई स्टार न्यूज़ के एक टॉक शो के बाद ! 13 फरवरी को स्टार न्यूज़ पर शाम को valentine day को लेकर एक टॉक शो चल रहा था ! इस शो को दीपक चौरसिया होस्ट कर रहे थे ! इसी शो में मुंबई से आशुतोष नाम के एक व्यक्ति से फ़ोनों लिया गया जिसमे उन्होंने ये  बात कही कि आज भगत सिंह और साथियों को फाँसी दी गयी थी लेकिन किसी को याद नहीं ! इसके बाद ये मैसेज और तेजी से फारवर्ड किया जाने लगा ! आशुतोष के एक मित्र से मेरी बात हुई और उन्होंने बताया कि आशुतोष ने तो उस मैसेज को पढने के बाद ही ये कहा था और उसके कहने का मतलब था  कि लोग ये भूल गए कि भगत सिंह को फाँसी 23 मार्च को हुई थी और सब लोग 13 फरवरी को ही उन्हें फाँसी पर जबरदस्ती लटका रहे है !
लेकिन इसमें सबसे बड़ी विडम्बना कि बात ये है कि उस वक़्त वहा बैठे किसी व्यक्ति ने ये नहीं कहा कि भगत सिंह को फाँसी २३ मार्च को हुई थी ! दीपक चौरसिया जो एक बड़े प्रतिष्ठित पत्रकार है , शायद उनकी अक्ल भी घास चरने चली गयी थी !बाकी का तो कहना ही क्या ?  और सब लोगों ने इस मैसेज को पढ़ा और अपनी देशभक्ति दिखाते हुए इसे फारवर्ड भी किया ! इससे ये साबित होता है कि हाँ वास्तव में हम लोग अपने प्रेरणा पुरुषों  को भूलते जा रहे है ! अगर इस तरह का कोई डे 5 जनवरी को या किसी भी दिन हो और मै सबको मैसेज कर दू कि आज उधम सिंह को फाँसी हुई थी लेकिन सब ये डे माना रहे है तो लोग उसे पढेंगे भी और आगे भेजेंगे भी ! यानि कि उन्हें पता ही नहीं है कि ऐसा हुआ था या नहीं ?
ऐसे स्तिथि वाकई में खतरनाक है क्योंकि जब कोई देश या समाज अपने प्रेरणा पुरुषों को, अपनी संस्कृति को ,अपने इतिहास को भूलने लगता है  तब वो अपने पतन कि ओर अग्रसर होने लगता है ! हाँ उस पतन का प्रारंभिक स्वरुप नैतिक हो सकता है !
अब ये मैसेज १३ फरवरी के दिन ऐसे क्यों चला , इस बारे में जब दोस्तों से चर्चा हुई तो पता लगा कि शायद १३ फरवरी १९३१ को भगत सिंह को फाँसी कि सजा सुने गयी थी ( मै अभी आस्वस्त नहीं हूँ कि ऐसा हुआ था , यदि किसी को पता है तो जरुर बताये ) ! किसी ने ऐसा मैसेज भेजा होगा बाकी चलते -२ कुछ छोड़ते हुए तो कुछ जोड़ते हुए कुछ और ही बन गया !
फिर भी हम सभी को इस ओर ध्यान देना चाहिए कि कम से कम हमारे प्रेरणा पुरुषों के साथ ऐसा न हो ! valentine डे जैसे फालतू त्योहारों /पर्वो या फिर पता नहीं क्या है के चक्कर में हम अपने इतिहास को न भूलें ! इतिहास के बिना क्या हाल होता है इसका एक उदहारण हम पाकिस्तान के रूप में देख रहे है !

अभी एक सुन्दर शेर याद आ रहा है :- कल नुमाइश में मिला था चीथड़े पहने हुए , मैंने पूछा नाम तो वो बोला कि हिंदुस्तान है !
फिर मिलूँगा !................ अलविदा

Thursday, January 28, 2010

सोनिया गाँधी और ऑटो वाला -एक सैर

नमस्कार मित्रों ! मैंने पिछले पोस्ट में  अपने एक अनुभव  को आप सब के सामने रखा था !आज फिर अपने एक और अनुभव को  आप सबके सामने रख रहा हूँ !
२४ जनवरी की बात है, हम कुछ मित्र  NEW ZEALAND के प्रसिद्ध पूर्व क्रिकेटर ( कप्तान ) सर रिचर्ड हेडली से मिलने अशोका होटल में गए थे ! शाम को ६ बजे वहा से वापसी के लिए मैंने एक ऑटो लिया, मेरे साथ में मेरे बड़े भाईसाहब भी थे !वो किसी काम से दिल्ली आये हुए थे तो उनको भी लेके चला गया था ! ऑटो ड्राईवर एक अनुभवी अधिक आयु वाला व्यक्ति था और काफी मिलनसार भी !वो रस्ते में आने वाले सभी बड़े नेताओ ,मंत्रियो के घर दिखाता जा रहा था !जब हम लोग जनपथ पहुचे तो वो सोनिया गाँधी (१० जनपथ) और रामविलास पासवान (उनके पडोसी ) का बंगला दिखने लग गया ! वो भी महंगाई से त्रस्त था, इसीलिए महंगाई के लिया सोनिया जी को उल्टा सीधा बोलता भी जा रहा था !ऐसे ही उसने पासवान जी के बारे में भी कहा की वो हारने के बाद भी बंगला नहीं छोड़ रहा !उसने कहा की ये नेता , मंत्री लोग जनता के पैसे को खाते हैं और जनता बेचारी दाल रोटी को भी तरस कर रह गयी है ! मैं भी उसकी बातों में रस लेने लगा था ! अतः वो मुझसे आराम से बातें कर रहा था !
वैसे वो ऑटो मैंने केंद्रीय सचिवालय मेट्रो स्टेशन जाने के लिए पकड़ा था ! वहा से मुझे किसी से मिलने के लिए नई दिल्ली जाना था , लेकिन फिर मैंने उससे कहा की अब नई दिल्ली तक ले चलो ! हाँ,  तो  हम जनपथ रोड से गुजर  रहे थे, सामने रेड लाइट होने पर ऑटो रुक गया ! वहा ६ -७ शसस्त्र बलों के जवान खड़े अपनी ड्यूटी कर रहे थे , उनसे थोड़ी दूरी पर कुछ छोटे बच्चे और औरतों भी फुटपाथ पर बैठे हुए थे ! रेड लाइट पर वाहनों के रुकते ही वो बच्चे वाहनों की तरफ दौड़ पड़े !एक बच्चा  हमारे पास भी आया , उसके हाथ में लेड वाली दो पेंसिले थीं !पेंसिलों को उसने भैया के पैर पर रख दिया और १० रुपये मांगने लगा ! मैंने कहा की भाई नहीं चैहिये तो वो हाथ जोड कर बोलने लगा - ले लो बाबूजी  आपको दुआ मिलेगा , भगवान भला करेगा !हमारे मना  करने पर उसने पैर पकड़ लिए और जोर -२ से बोलने लगा -ले लो बाबूजी  आपको दुआ मिलेगा , भगवान भला करेगा !पेंसिल हमें लेनी नहीं थी पर मैंने  सोचा की कुछ पैसे दे दूँ , मैंने २ रुपये निकले और देने लगा तो उसने मना  कर दिया और कहा की ले लो -२, फिर ऑटो वाले ने जोर से डाटा तो वो २ रुपये लेकर चला गया !    बाद में ऑटो वाले ने कहा की क्यों दे दिए पैसे ,ये गरीब नहीं पेशेवर भिखारी है, आप इन्हें कहो की घर चल खाना खिलाऊंगा, कपडे दूंगा तो ये भाग जाते है ! ये सब दाउद के लोगो से पाले जाते है और इनकी जगह फिक्स होती है ,............. अगर मै या आप भीख मांगने आ जाये तो जान से मार दिए जायेंगे ! ......और ये सब मैडम सोनिया की नाक के निचे होता है !

मै उससे लगातार बात करता रहा , फिर मैंने उससे उसके बारें में पूछना शुरू किया ,  उसका नाम - लक्ष्मण सिंह  है और वो पिथौरागढ़ कुमाओं से है !       मैंने उसके ऑटो के बारे में पुचा तो उसने बताया की ये उसका अपना है और जल्द ही उसका परमिट ख़त्म होने वाला है !नई परमिट लेने के लिए ५ लाख की जरुरत है लेकिन दलाल के जरिये वो ये काम १.५ लाख में ही करा लेगा !    लेकिन देश के प्रधानमंत्री  और राष्ट्रपति को चलने वाली वो सोनिया भी इस काम को १.५ लाख में नहीं  करा सकती लेकिन मै करा सकता हूँ ! 
दोस्तों इस तरह वो हमेंबहुत साड़ी बातें बताता हुआ बिलकुल ठीक जहाँ हमें जाना था वाही छोड़  दिया  --- मुल्तानी धांधा पहाड़गंज ! मैंने पैसे देने के बाद उसे धन्यवाद दिया !फिर पूछा कहा रहते हो, बाकि पैसे लौटते हुए वो बोला - पटपडगंज ! मैंने अलविदा कहते हुए कहा की फिर मिलेंगे लेकिन वो अपना ऑटो मोड़ने में व्यस्त हो गया था !
दोस्तों वो शाम मुझे याद रहेगी !
फिलहाल इतना ही .......................................................अलविदा  

Thursday, January 14, 2010

गरीबी की स्वीकार्यता

नमस्कार मित्रो !आज मकरसंक्रांति है ! ऐसा कहते है कि आज सूर्य देव उत्तरायण से दक्षिणायन की ओर जाते है, और आज से ठण्ड कम होनी शुरू हो जाती है !
आज जब मै सुबह उठा तो आज भी रोज कि तरह भीषण ठण्ड थी लेकिन अपने दैनिक कार्यो के लिए तो निकलना ही था ! मेरे  हाउस एक्साम्स चल रहे है , आज मेरी अंतिम परीक्षा थी ! अतः मै भी सुबह -२ तैयार होकर घर से निकला और मेरी तरह ही बाकी लोग भी पापी पेट के लिए अपने घरो से निकल चुके थे ! मै बस स्टैंड पर गया और खुशकिस्मती से तभी मेरे रूट की एक डी टी सी बस आ गयी !मै खुद को  बहुत भाग्यवान समझ रहा था क्योंकि मुझे १५-२० मिनट इन्तजार किया बिना ही डी टी सी बस मिल गयी थी ! मै बस में चढ़ गया और कुछ ही देर में सीट भी मिल गयी और भी अच्छा ये की ऐसा कोई असहाय व्यक्ति भी नहीं खड़ा था जिसे सीट की आवश्यकता हो और न ही कोई महिला या वृद्ध !हा एक -दो लड़कियां खड़ी थी लेकिन मैंने उन्हें सीट के लिए नहीं पूछा क्योंकि वो महिलाएं नहीं है !
खैर , लगभग १५ मिनट  के सफ़र के बाद एक बहुत ही अजीब घटना घटी ! एक व्यक्ति बस में चढ़ा जो देखने में सामान्य सा लग रहा था , शर्ट पैंट और स्वेटर पहने हुए था और उसके ऊपर एक साल ओढ़कर रखी थी! वो एक सामान्य मध्य वर्गीय आदमी कि तरह लग रहा था लेकिन इसमें कुछ भी नया नहीं था !हैरानी  तो तब हुई जब  कंडक्टर द्वारा टिकेट मांगने पर उसने एक हलकी फीकी मुस्कान एके साथ कहा कि टिकेट के लिए पैसे नहीं है और मुझे घंटा घर तक जाना है!सामान्यतः जब इस तरह कोई चढ़ता है तो लोग उसे तिरस्कार कि नजरो से देखते है, कंडक्टर उसे बस से नीचे उतार देता है लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ ! उसकी ये बात सुनकर कंडक्टर एक बार को तो अवाक रह गया उसे समझ नहीं आया कि वो क्या करे , क्या बोले ............ बाकी लोग भी उस आदमी को बिना कुछ बोले एकटक देखते रहे ................. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि  वो कोई भिखारी नहीं था, वो कोई मांगने वाला नहीं था बल्कि "वो एक सामान्य गरीब आदमी था जो हलकी फीकी मुस्कान के साथ अपनी गरीबी स्वीकार कर रहा था " !एक आम आदमी जो स्वाभिमानी होता है लेकिन आज इस गरीबी ने सबके सामने उसे झुका दिया !कंडक्टर ने उससे कहा कि कोई बात नहीं तू बीच में खड़ा हो जा मै तुझे घंटाघर उतार दूंगा ! वो बिना कुछ बोले आगे बढ़ गया , तभी उसके सामने एक सीट खाली हुई लेकिन उसकी बैठने कि हिम्मत न हुई या वो खुद को शायद उस सीट का हक़दार नहीं मान रहा था ! तभी कंडक्टर उससे एक बार फिर पूछा कि सच में पैसे नहीं है लेकिन उसने सुना नहीं , वहा खड़े एक आदमी ने कहा कि बुलाऊ क्या तो कंडक्टर ने कहा कि रहें दे !................शक्ति नगर कि रेड लाइट आने पर मै उतर गया क्योंकि मुझे दूसरी बस लेनी थी , मुझे विस्वास है कि कंडक्टर ने उसे घंटाघर पर उतार दिया होगा ! 

Sunday, January 10, 2010

amar kriti madhushala

नमस्कार दोस्तों ! आज अमिताभ जी कि आवाज में मधुशाला का आनंद लिया ! मिशंदेह मधुशाला एक अमर कृति है ! हरिवंश राय बच्चन जी ने इसे न जाने किस कल्पना लोक में जाके लिखा था लेकिन ये वास्तव में एक अद्भुत कृति है जो आपको मस्त कर देती है ! मई नमन करता हु उस महान कवी को,........
कुछ पंक्तिया ................
अपने युग में सबको अद्भुत ज्ञात हुई अपनी हाला .
अपने युग में सबको अनुपम ज्ञात हुआ अपना प्याला .
फिर भी वृधो से जब पुचा एक यही उत्तर पाया
अब न रहे वे पिने वाले अब न रही वो मधुशाला !
             ......................अब कुछ लिखने का मन नहीं कर रहा !अलविदा

Monday, November 23, 2009

26/11 aur kasab aur hum aur hamari sarkar

26711 की घटना को एक वर्ष होने को जा रहे है लेकिन हम अब तक उस हमले के एकमात्र  जीवित आतंकी को सजा नहीं दे पाए है. अलमल आमिर कसाब भारत में स्पेशल कोर्ट में खड़े होकर ठहाके लगता है. वो जेल में बिरयानी की मांग करता है क्यों कि वो जानता है कि वो एक ऐसे मुल्क में बंदी है जहा मानव से अधिक मानव अधिकार बड़ा माना जाता है , जहा देश हित से बड़ा पार्टी हित और अपनी कुर्सी का हित होता है. हमारी सरकार सैकड़ों लोगो को मारने वाले कसाब पर अपनी जनता के खून पसीने की कमाई बर्बाद कर रही है. इससे शर्म की बात क्या होगी की जिस आतंकवादी को निर्दोष लोगो को मारते हुए सबने लाइव देखा था उसे हम सजा नहीं दे पा रहे है. उसके खिलाफ भी सबूत ढूढे जा रहे है .क्या ये हमारे कानून की कमी नहीं है ? क्या ऐसे आदमी को फांसी देने के लिए सबूतों की जरुरत है ? यदि हा तो फिर ये उन लोगो ओके गाली देने जैस होगा जिन्होंने इस हमले में अपनी जान गवाई है. ये उन शहीदों के साथ विश्वासघात  है जिन्होंने देश के नाम अपने प्राण न्योछावर कर दिए. कसाब जैसे आदमी के लिए कोई कानून नहीं होता लेकिन फिर भी हम तुष्टिकरण कि आंधी में कसाब सर आँखों बैठा रहे है . ऐसे व्यक्ति को तो सरे आम जनपथ पर गोली मार देनी चाहिए और जनपथ का भी नाम चरितार्थ करना चाहिए , लेकिन क्या भारत में ऐसा संभव है ?
         जरा विचार करे कि ऐसा क्यों ?