Pages

Thursday, January 14, 2010

गरीबी की स्वीकार्यता

नमस्कार मित्रो !आज मकरसंक्रांति है ! ऐसा कहते है कि आज सूर्य देव उत्तरायण से दक्षिणायन की ओर जाते है, और आज से ठण्ड कम होनी शुरू हो जाती है !
आज जब मै सुबह उठा तो आज भी रोज कि तरह भीषण ठण्ड थी लेकिन अपने दैनिक कार्यो के लिए तो निकलना ही था ! मेरे  हाउस एक्साम्स चल रहे है , आज मेरी अंतिम परीक्षा थी ! अतः मै भी सुबह -२ तैयार होकर घर से निकला और मेरी तरह ही बाकी लोग भी पापी पेट के लिए अपने घरो से निकल चुके थे ! मै बस स्टैंड पर गया और खुशकिस्मती से तभी मेरे रूट की एक डी टी सी बस आ गयी !मै खुद को  बहुत भाग्यवान समझ रहा था क्योंकि मुझे १५-२० मिनट इन्तजार किया बिना ही डी टी सी बस मिल गयी थी ! मै बस में चढ़ गया और कुछ ही देर में सीट भी मिल गयी और भी अच्छा ये की ऐसा कोई असहाय व्यक्ति भी नहीं खड़ा था जिसे सीट की आवश्यकता हो और न ही कोई महिला या वृद्ध !हा एक -दो लड़कियां खड़ी थी लेकिन मैंने उन्हें सीट के लिए नहीं पूछा क्योंकि वो महिलाएं नहीं है !
खैर , लगभग १५ मिनट  के सफ़र के बाद एक बहुत ही अजीब घटना घटी ! एक व्यक्ति बस में चढ़ा जो देखने में सामान्य सा लग रहा था , शर्ट पैंट और स्वेटर पहने हुए था और उसके ऊपर एक साल ओढ़कर रखी थी! वो एक सामान्य मध्य वर्गीय आदमी कि तरह लग रहा था लेकिन इसमें कुछ भी नया नहीं था !हैरानी  तो तब हुई जब  कंडक्टर द्वारा टिकेट मांगने पर उसने एक हलकी फीकी मुस्कान एके साथ कहा कि टिकेट के लिए पैसे नहीं है और मुझे घंटा घर तक जाना है!सामान्यतः जब इस तरह कोई चढ़ता है तो लोग उसे तिरस्कार कि नजरो से देखते है, कंडक्टर उसे बस से नीचे उतार देता है लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ ! उसकी ये बात सुनकर कंडक्टर एक बार को तो अवाक रह गया उसे समझ नहीं आया कि वो क्या करे , क्या बोले ............ बाकी लोग भी उस आदमी को बिना कुछ बोले एकटक देखते रहे ................. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि  वो कोई भिखारी नहीं था, वो कोई मांगने वाला नहीं था बल्कि "वो एक सामान्य गरीब आदमी था जो हलकी फीकी मुस्कान के साथ अपनी गरीबी स्वीकार कर रहा था " !एक आम आदमी जो स्वाभिमानी होता है लेकिन आज इस गरीबी ने सबके सामने उसे झुका दिया !कंडक्टर ने उससे कहा कि कोई बात नहीं तू बीच में खड़ा हो जा मै तुझे घंटाघर उतार दूंगा ! वो बिना कुछ बोले आगे बढ़ गया , तभी उसके सामने एक सीट खाली हुई लेकिन उसकी बैठने कि हिम्मत न हुई या वो खुद को शायद उस सीट का हक़दार नहीं मान रहा था ! तभी कंडक्टर उससे एक बार फिर पूछा कि सच में पैसे नहीं है लेकिन उसने सुना नहीं , वहा खड़े एक आदमी ने कहा कि बुलाऊ क्या तो कंडक्टर ने कहा कि रहें दे !................शक्ति नगर कि रेड लाइट आने पर मै उतर गया क्योंकि मुझे दूसरी बस लेनी थी , मुझे विस्वास है कि कंडक्टर ने उसे घंटाघर पर उतार दिया होगा ! 

3 comments:

  1. ऐसा भी होता है..

    ReplyDelete
  2. हा भाई ऐस्सा होता मेने भी एक ओरत को देखा था जो गरबी को स्वीकार रही थी लिखते रहो भाई

    ReplyDelete