आज हम जिस आईपीसी यानि भारतीय दंड संहिता के आधार पर अपना देश चला रहे है उसको लागू करने का मकसद तो हम जान ही चुके है !इस बारे में हमारे महापुरुषों की क्या राइ थी जरा उसे भी ध्यान करे :-
*युवा क्रन्तिकारी शहीद सरदार भगत सिंह ने फांसी लगने से पहले कहा था की "भारत में न्याय के लिए आईपीसी यानि भारतीय दंड संहिता को समाप्त किया जाए !"
*भारत के सबसे कम उम्र के फांसी पाने वाले क्रांतिकारी मदनलाल धींगरा ने लन्दन से लिखे अपने एक पत्र में इसकी समाप्ति की बात कही थी !
*स्वतंत्रता के बाद अनेक नेताओ क्रांतिकारियों ने आईपीसी को हटाने को कहा लेकिन हमारे प्रधानमंत्री चाचा नेहरू ने कहा की "इसी के आधार पर तो हम शासन चलाएंगे ,यही तो व्यवस्था है !"
हमारी आज़ाद गुलामी तो देखिये की जनाब, अपराध पाप अनाचार की परिभाषा भी हमने इस आईपीसी यानि आयरिश पीनल कोड यानि इंडियन पीनल कोड ली है !
इसके बाद भी हम कहते है की हम आज़ाद है !
हम कितने आज़ाद है इसकी थोडी चर्चा और करते है!
यदि हम अपने संविधान की बात करे जिसके आधार पर देश का राज - काज ,न्यायपालिका ,कार्यपालिका और विधायिका कार्य करती है उसका निर्माण भी बड़े अजीब तरीके से हुआ है !जिस प्रकार पीएचडी के छात्र या शोधार्थी १० किताबो को पड़कर एक नई किताब लिख देते है ,उसी प्रकार हमारे महान संविधान निर्माताओ ने अलग -अलग देशो का संविधान पढ़कर कट और पेस्ट की पद्धति अपनाते हुए एक नया ग्रन्थ तैयार कर दिया जिसे हम "भारतीय संविधान "के नाम से जानते है !
हमारे संविधान की प्रस्तावना में पहली लाइन में लिखा है की "हम भारत के लोग" लेकिन संविधान में भारत के लोगो का स्थान कहा है ! जरा विचार करे ................!